मुझे अपने परिवार और प्रोफेशन की तरह यदि किसी संस्था से आत्मिक लगाव है तो वह ‘ईफ़ा पब्लिक स्कूल’ है। जिस तरह से शिक्षण और लेखन मेरे लिए पूजा है ठीक उसी तरह ईफ़ा पब्लिक स्कूल मेरे लिए मंदिर है। वह दिन मेरे जीवन का बेहद खास दिन है जिस दिन मैं ‘ईफ़ा’ से जुड़ा। वैसे तो मैं सन् 2000 से ही शिक्षण कार्य में संलग्न हूँ लेकिन वास्तव में शिक्षा की वास्तविक परिभाषा और एक शिक्षक के वास्तविक कर्तव्यों से अवगत सन् 2012 में हुआ।यह वही पावन वर्ष है जब मेरा पदार्पण ईफ़ा पब्लिक स्कूल में हुआ।प्रकृति की हरी-भरी गोद में अवस्थित इस विद्यालय के प्रांगण में प्रवेश करते ही मेरा मन एक अद्भुत उर्जा और ताजगी से सराबोर हो जाता है। प्रत्येक दिन के लगभग 10-11 घंटे यहीं व्यतीत करता हूँ लेकिन कभी बोरियत का एहसास भी नहीं होता।शिक्षण-कार्य से फारिग होने के बाद यहीं बैठकर गीतों की रचना करता हूँ।कहानियों का प्लॉट तलाशता हूँ। बड़ा सुकून मिलता है मुझे यहाँ।यहाँ की विद्यालय-प्रबंधन-समिति हमेशा मेरा हौसला-अफ़जाई करती रहती है। इस विद्यालय की प्रबंधन-समिति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह अपने सभी स्टाफ़ों की जरूरतों का बखूबी ख्याल रखती है। ससमय वेतन का भुगतान,समय-समय पर अपने सुयोग्य शिक्षकों को पुरस्कृत करना और नवनियुक्त शिक्षकों को समुचित प्रशिक्षण देना यहाँ की प्रबंधन-समिति की आदत में शुमार है। विद्यालय के प्रबंध-निदेशक ‘श्री अनुराग सिंह’ एवं वरिष्ठ शिक्षिका ‘श्रीमती जयश्री प्रकाश’ के अपार अनुभव का प्रतिफल सभी शिक्षकों और विद्यार्थियों को बराबर मिलता रहता है।इनके समुचित गाइड-लाइन का ही यह कमाल है कि यहाँ के विद्यार्थी अत्यंत अनुशासित और अध्ययन के प्रति समर्पित हैं।जो अनुशासन का वातावरण इस विद्यालय में कायम है वह अन्य विद्यालयों में कम ही नज़र आता है।
मुझे फख्र है कि इस विद्यालय का मैं भी एक हिस्सा हूँ। ईश्वर से करबद्ध यही प्रार्थना है कि हमारा यह विद्यालय प्रगति पथ पर एक प्रयत्नशील पथिक की भाँति आगे बढ़ता रहे और यहाँ के विद्यार्थी सुयोग्य नागरिक बनकर हमारे देश की सुन्दरता में चार चाँद लगाते रहें।